रायगढ़, तमनार छत्तीसगढ़ की ज़मीन फिर एक बार कंपनियों की लापरवाही का शिकार बनी है। जिंदल पावर लिमिटेड की डोंगामहुआ कोल माइंस में हुए भीषण विस्फोट ने एक बेकसूर मजदूर की जान ले ली और दो मजदूरों को ज़िंदगी और मौत के बीच झुलसने को छोड़ दिया। शुक्रवार सुबह 11 बजे का समय था, जब खदान के भीतर ज़िंदगी दांव पर थी और बाहर बैठा प्रबंधन मुनाफे के सपने बुन रहा था।
विस्फोट इतना भयानक था कि वैन के परखच्चे उड़ गए, और भीतर बैठे तीनों मजदूर लहूलुहान हो गए।
मृतक की पहचान आयुष बिश्नोई के रूप में हुई है। चंद्रपाल राठिया और अरुण लाल निषाद गंभीर रूप से घायल हैं और रायगढ़ के फोर्टिस अस्पताल में भर्ती हैं।

क्या ये हादसा था? नहीं! ये एक सुनियोजित लापरवाही का नतीजा था। एक ऐसा क्रूर सिस्टम, जिसमें मजदूर महज “यूज़ एंड थ्रो” हैं – सुरक्षा इंतजाम शून्य, जिम्मेदारी गायब और जवाबदेही का नामोनिशान तक नहीं।
क्यों नहीं रुकी मौत की खदान?
क्या जिंदल जैसी कंपनी को मजदूरों की ज़िंदगी की कोई कीमत नहीं?
क्या मुनाफे की हवस ने इंसानियत को निगल लिया है?
प्रशासन कहता है कि जांच होगी। पर सवाल ये है कि क्या ये जांच भी फाइलों में दबी सच्चाई बनकर रह जाएगी? या फिर किसी अफसर, किसी नेता, किसी दलाल के इशारे पर लीपापोती कर दी जाएगी?
तमनार थाना प्रभारी मोहन भारद्वाज का बयान खोखला लगता है, जब तक जिंदल प्रबंधन के खिलाफ गैर आदतन हत्या का मुकदमा दर्ज न हो जाये।